नवगछिया:नवगछिया में बढ़ते यूरिया के दाम को लेकर कृषि विभाग और जिला प्रशासन इन दिनों खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं। खुदरा खाद दुकानों पर लगातार छापेमारी, जांच टीमों का दौरा और चेतावनी का दौर जारी है। उद्देश्य एक ही बताया जा रहा है— सरकारी दर पर किसानों को यूरिया उपलब्ध कराना।
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। नाम न छापने की शर्त पर एक खुदरा खाद विक्रेता ने जो ‘दर्द’ सुनाया, वह प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
खुदरा दुकानदार का कहना है कि प्रशासन एक तरफ सरकारी रेट पर यूरिया बेचने को लेकर सख्ती दिखा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी रेट पर यूरिया मिल ही नहीं रहा। ऐसे में सवाल उठता है— जब खरीद महंगी होगी तो बिक्री सस्ती कैसे होगी?
दुकानदार ने बताया कि नवगछिया के मकंदपुर चौक स्थित बड़े होलसेलर खुदरा विक्रेताओं को सरकारी मूल्य पर यूरिया देने से साफ इनकार कर देते हैं। मजबूरी में उन्हें 300 रुपये प्रति बोरा की दर से यूरिया लेना पड़ता है, जो कि सरकारी मूल्य से कहीं अधिक है। इतना ही नहीं, यूरिया के साथ 130 रुपये प्रति बोरा ‘टैगिंग’ (ऊर्जा पैक आदि) लेना भी अनिवार्य कर दिया गया है। मकंदपुर चौक स्थित एक बड़े होलसेलर का कथित तौर पर स्पष्ट कहना है—
> “एडवांस में 300 रुपये प्रति बोरा यूरिया का और 130 रुपये टैगिंग का नहीं देंगे, तो यूरिया नहीं मिलेगा।”
इस ‘व्यवस्था’ का असर यह है कि एक ट्रिप में करीब 200 बैग यूरिया लेने पर खुदरा दुकानदार को 28 से 30 हजार रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं। यानी यूरिया नहीं, बल्कि जुर्माना खरीदा जा रहा है। खुदरा विक्रेताओं का आरोप है कि यह पूरा खेल जिला कृषि विभाग की कथित मिलीभगत से चल रहा है। बड़े स्तर पर हो रही इस वसूली पर कोई कार्रवाई नहीं होती, जबकि प्रशासन का सारा गुस्सा अंततः खुदरा दुकानदारों पर ही उतरता है।व्यंग्य यह है कि जिन हाथों में नियंत्रण की चाबी है, वे ही दरवाज़ा खोलकर बैठ गए हैं और बाहर खड़े दुकानदारों से पूछ रहे हैं— रेट क्यों बढ़ाया?
अब सवाल यह है कि नवगछिया में यूरिया की कीमत आखिर तय कौन कर रहा है— सरकार, होलसेलर या ‘टैगिंग सिस्टम’?
जब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, तब तक सरकारी रेट सिर्फ नोटिस बोर्ड तक ही सीमित रहेंगे और किसान महंगे यूरिया का बोझ ढोते रहेंगे।



